भारत की पारम्परिक बौद्धिक सम्पदा – स्वस्थ जीवन के लिए

भारत की पारम्परिक बौद्धिक सम्पदा – स्वस्थ जीवन के लिए

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” पारम्परिक बौद्धिक सम्पदा ” किसी भी समाज व राष्ट्र की अपनी अमूल्य निधि होती है | एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी को हस्तांतरित होने वाली जानकारियां, जो हजारों वर्षों से विभिन्न प्रयोगों व अनुभवों के द्वारा सिद्ध होकर आगे बढ़ती हैं ” पारम्परिक बौद्धिक सम्पदा ” कहलाती हैं | यह अनुभव सिद्ध अमूल्य सम्पदा है, क्योंकि इसमें हजारों वर्षों का अनुभव जुड़ा होता है और एक बार लुप्त हो जाने पर दुबारा अनुभवों द्वारा सिद्ध कर प्राप्त करना असंभव ही है |

इस तरह की जानकारी की विशेषताएं अनेक हैं, कुछ पर ध्यान आकृष्ट करता हूँ –
1. यह हजारों वर्षों के अनुभवों से सिद्ध हो जाती है
2. यह क्षेत्र की प्राकृतिक परिस्थितियों (जैसे वातावरण, परम्परा ) के भी अनुकूल होती है
3. सभी में प्रयोग किये जाने वाली वस्तुएं भी आस पास ही उपलब्ध होती हैं
4. यह किसी की व्यक्तिगत संपत्ति न होकर सम्पूर्ण समाज की सांझी संपत्ति होती है, अतः सहज होती है
5. यह आज विभिन्न कहानियों, लोकोक्तियों, कहावतों, गीतों, परम्पराओं के आलावा समाज के रीति – रिवाजों, नियमों व विश्वास के रूप में भी विकसित होकर सरल रूप में हम तक आयी है
6. यह ज्यादातर अलिखित मौखिक ही आगे से आगे बढ़ी है
7. यह ज्यादातर अपनी मातृभाषा या क्षेत्रिय भाषा में ही हस्तगत हुई है
8 यह क्षेत्र में होने वाले प्राकृतिक पादप व जीव जंतुओं को भी ध्यान में रखकर ही आगे बढ़ी है; प्रकृति के अति अनुकूल होकर प्राकृतिक सम्पदा को भी बढ़ाने वाली होती हैं | अतः आज के वर्तमान प्रदूषण से भयभीत समाज के लिये यह अति महत्वपूर्ण हो जाती है
ऐसी निधि को आज संभाल कर और नये अनुभवों के साथ आगे की पीढ़ी को देने का दायित्व वर्तमान पीढ़ी का होता है |
भारत में स्वस्थ रहने की अपनी अनुभूत परम्परा है | घर घर में ऐसी जीवन पद्धति, आहार, विहार, विचार का ध्यान किया जाता रहा है | और यह मुख्यतः मातृशक्ति द्वारा आग्रह से श्रद्धापूर्वक पालन कराने के कारण सामान्यतया स्वस्थ जीवन यापन की परम्परा हजारों वर्षों तक रही है |
पिछली दो – तीन पीढियों में इन परम्पराओं, विश्वासों पर कमी होने के कारण आज भारत में रोग, रोगी, अस्पताल ऐसे बढ़ रहे हैं कि आगे संभालना असंभव सा ही लगने लगा है |
हम ऐसी जानकारियों को संभालें और अपने वर्तमान दायित्व को निभाएं जिससे हमारी आने वाली पीढ़ी स्वस्थ रहकर भारत के विचार ‘सर्वे सन्तु निरामया’ को विश्व में पुनः प्रतिष्ठित कर सके |


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